जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ मुकदमा सुप्रीम कोर्ट ने बंद किया
सेहतराग टीम
कूल्हे, घुटने आदि के दोषपूर्ण इम्प्लांट के लिए पूरी दुनिया में कानूनी प्रक्रिया का सामना कर रही अमेरिकी फार्मा कंपनी को भारत के सुप्रीम कोर्ट से कुछ राहत मिली है। कोर्ट ने कूल्हे के दोषपूर्ण इम्प्लांट के मामले में जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाले मामले को शुक्रवार को बंद कर दिया। कोर्ट ने कहा कि दोषपूर्ण इम्प्लांट के कारण प्रभावित हुए मरीजों को 1.22 करोड़ रुपये तक का जुर्माना मुहैया कराने के लिए केंद्र ने कदम उठाए हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस.के. कौल की पीठ ने प्रभावित लोगों को मुआवजा देने पर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उठाए कदमों पर विचार किया और कहा कि याचिका को लंबित रखने का कोई ‘औचित्य नहीं’ है।
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि जिन मरीजों में कूल्हे का दोषपूर्ण इम्प्लांट लगाया गया उनके लिए मुआवजा तय करने के मामले में डॉक्टर अरुण कुमार अग्रवाल और डॉक्टर आर.के. आर्या के नेतृत्व वाली दो समितियों ने कुछ सुधारों का सुझाव दिया और सरकार ने उन्हें स्वीकार कर लिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि समिति ने सिफारिश की कि तकरीबन 1.22 करोड़ रुपये तक का मुआवजा दिया जा सकता है और मुआवजा देने के सिद्धांतों/फॉर्मूला की भी सिफारिश की गई। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया।
उच्चतम न्यायालय अरुण कुमार गोयनका की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें आरोप लगाया गया कि साल 2005 से 4,525 भारतीय मरीजों के शरीर में कूल्हे का ‘दोषपूर्ण’ और ‘जानलेवा’ प्रतिरोपण किया गया।
वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद और वकील विवेक नारायण शर्मा ने कहा था कि अमेरिकी कंपनी द्वारा दोषपूर्ण हिप इम्प्लांट प्रोड्यूस और वितरित किए जाने से आई विपत्ति की जांच करने के लिए केंद्र सरकार ने 2017 में अग्रवाल के नेतृत्व में एक समिति गठित की।
गोयनका द्वारा दायर याचिका में कहा गया, ‘समिति ने पाया कि जॉनसन एंड जॉनसन चिकित्सा लापरवाही की दोषी है हालांकि अभी तक असंख्य मरीजों का पता लगाने के लिए कुछ नहीं किया गया जिन्होंने कूल्हे का प्रतिरोपण कराया।’ गोयनका की मां की कूल्हे के दोषपूर्ण प्रतिरोपण के कारण मौत हो गई थी।
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